उनके दहलीज पर पाँव जमाना,अब जमाना लगता हैउनके तबस्सुम निगाहें नूर, कितना तराना लगता है। खुदा खैर करे, जिंदगी संवर जाये अपनी,उसे देखकर उनके खुद का पहरेदार भी, उनका दिवाना लगता है। उसे जन्नत की नूर कहूँ या फिर,कहूँ परियों की रानी चश्मे में चाँद उतर आए, ऐसा अफसाना लगता है। गुफ्तगू चलती रही और ख्याल संवरते बिगड़ते रहे उनके हर अंदाज, हर अदा कितना शायराना लगता है। दिवानगी,मुहब्बत के इंतहा में जलकर खाक होता रहा उनकी हर इक अदा,बिन्दु को,कितना दोस्ताना लगता है।
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Bahut khoobsoorat rachna Bindeshwar JI
बहुत बहुत धन्यवाद किरण जी।
बहुत ही सुन्दर रचना
भावना जी.. तहे दिल आभार।
अति उत्तम बिन्देश्वर जी
बहुत बहुत शुक्रिया श्री मान जी।
matla mujhe clear nahin hua…….behad sundar……….
श्री मान जी मैं आपका बहुत ही सुक्र गुजार हूँ… थोड़ी हमें गाइड लाइन दें। बहुत बहुत शुक्रिया।
उनके खुद का पहरेदार भी, उनका दिवाना लगता है। Ati sunder.
बहुत बहुत शुक्रिया।
Bahut sundar….
तहे दिल आभार।
बहुत बहुत शुक्रिया।