– [ ] मुसाफ़िर – [ ] है इक सफ़र यह ज़िन्दगी- [ ] हो मुसाफ़िर तुम – [ ] और मुसाफ़िर मैं भी – [ ] है साथ कुछ दूर का – [ ] मंज़िल से दूर कुछ तुम – [ ] कुछ दूर हूँ मैं भी – [ ] जो आता है नज़र इस पल- [ ] झपकते ही पलक – [ ] हो जाता है ओझल- [ ] रफ़्तार से गुज़र जाते हैं क्षण- [ ] जि़न्दगी के दौर में- [ ] भटकता रहता है मन- [ ] दूरी को नाप लें नज़रों से हम – [ ] मुमकिन नहीं यह तुम्हारे लिए – [ ] न ही मुमकिन है मेरे लिए – [ ] पर मंज़िल तो बस है मंज़िल ख़त्म होगा सफ़र कब कहॉं मेरा – [ ] कब कहॉं रुक जाओगे तुम – [ ] है इक सफ़र यह ज़िन्दगी – [ ] हो इक मुसाफ़िर तुम – [ ] और हूँ इक मुसाफ़िर मैं भी
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BAHUT UMDA SUNDER RACHNA KRITI.
Thanks Bindeshwar JI
बेहद उम्दा….अंहभावों का टकराव….”दूरी को नाप लें नज़रों से हम” वाह…क्या बात है…दूरी ही नाप ली तो मंज़िल मिल गयी….बस दूरी ही “समझ” नहीं आती…..
Thanks Sharma JI