मुश्किलों के चक्रवात जब अपना जोर दिखाते हैं ।मेरे अस्तित्व के घरोंदे को जड़ से उखाड़ जाते हैं ।जुगनु सी हिम्मत चमकती है,जब कुछ पलों के कोने में,उसी मोड़ पर तेज धार मुझे फिर पीछे छोड़ जाती है ।अकेला तड़पता,तरसता ,छटपटाता – करता रहता हूँ संघर्ष ।मार कर मन को,हरा कर थके तन को कोशिशों के बाण ,अल्प अवसरों के धनुष पर चढ़ाता हूँ ।शिथिल हाथ,झकझोर हवा के थपेड़े !अनिश्चितता के अंधेरे !बेताल की तरह मेरेँ काँधे निचोड़े जाते हैं ।तभी मरु भूमि में-नखलिस्तान की तरह !भोले बालक की मुस्कान की तरह !पतझड़ में फूटी कोंपलों की तरह !किसी पंछी की पहली उड़ान की तरह !असफल प्रयत्नों में छिपे खोटे-प्रयत्न की तरह !मेरी हिम्मतों को देते अवलम्ब !सफलता मेरे लिए और मैं सफलता के लिए विजय श्री का हार गूँथ लाता हूँ ।। मुक्ता शर्मा
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बहुत ही खुबसूरत रचना
Wah Wah, Kya Baat Kya Baat Kya Baat