अब भी गिरती हूँ,फिर संभलती हूँ,फिर उठती हूँ,फिर चल पड़ती हूँ,मैं नादान हूँ|अब भी गलतियां करती हूँ,फिर कुछ सीखती हूँ,फिर नए सपने बुनती हूँ,फिर आगे बढ़ जाती हूँ,मैं नादान हूँ |कभी खामोश हूँ,कभी खिलखिलाती हूँ,कभी उदास तो कभी खुश हो जाती हूँ,ज़िन्दगी के हर पल को जीती हूँ,मैं नादान हूँ| अनु महेश्वरीचेन्नई
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बहुत ही सुन्दर रचना
Thank you, Bhawana ji…
बेहद खूबसूरत….इंसान जब तक ज़िंदा है सीखता है…कभी अपनी गलतियों से कभी दूसरों से….
Thank you, Sharma ji…