Homeअज्ञेयदूज का चाँद दूज का चाँद अनिल जनविजय अज्ञेय 13/02/2012 No Comments दूज का चाँद- मेरे छोटे घर-कुटीर का दिया तुम्हारे मंदिर के विस्तृत आँगन में सहमा-सा रख दिया गया । Tweet Pin It Related Posts एक चिकना मौन / अज्ञेय चाँदनी चुपचाप सारी रात आँगन के पार About The Author अनिल जनविजय कविता का पाठक हूँ और दूसरी भाषाओं की कविता का अनुवाद करता हूँ। Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.