शीर्षक-भूल नहीं पाता तुम्हेआज भी घर के बरामदे में बैठअपने चश्मे को पोछता हुआमैं इंतज़ार कर रहा तुम्हाराहवा बहती हुई जबपर्दों को उड़ा ले जाती हैघर में लगी तुम्हारी तस्वीर कोहिला सा जाती हैतुम्हारे इंतज़ार में मन ठिठक सा जाता हैमैं गमलो में लगे पौधों कोसींच कर भूल जाना चाहता हूँ पर भूल नहीं पाता तुम्हेतुम्हारे एहसास के होने मात्र सेखिल सा जाता हूँगमले में लगे फूलो की तरहदीवाली की रंगोलीहोली में खाई भांग की गोली सब याद आते हैपसीने की बुँदेजो मालपुए बनाते वक़्त गिरते थेतुम्हारे जिस्म सेउसे देख मैं और भी मीठा हो जाता थामैं सब भूल जाना चाहता हूँपर भूल नहीं पाता तुम्हे—अभिषेक राजहंस
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Dil ko chhuti kavita
Dhanyawad aadarniy
बहुत खूबसूरत, भावपूर्ण रचना है आपकी……….
तहे दिल से आपका धन्यवाद
सुंदर रचना….. सुंदर भाव….. अभिषेक जी….
धन्यवाद आपका काजल जी
सुंदर भावाभिव्यक्ति …………………!