देकर ठोकरें जीना सिखाती है जिंदगीसच्चाई सबकी सामने लाती है जिंदगी।सिलसिला कुछ उतार चढ़ाव का देकरकभी हंसाती तो कभी रुलाती है जिंदगी।खोई थी मै तो इश्क के आगोश मेंदेकर दर्द क्या है ये समझाती है जिंदगी ।क्या मिला मुझे ख्वाहिशों में जी करबेकरारी हसरतों की बढाती है जिंदगी ।आसान नहीं है ठीक से समझ पाना इसेकितने रंग दुनिया में भर जाती है जिंदगी।किसे रोकर बयां करु अब मैं गम अपनाहर शख्स के कितने चेहरे दिखाती है जिंदगी।सजदे में कभी न झुकता था मेरा सर इबादत की कीमत क्या, बताती हैं जिंदगी ।जीने की तेरे संग बड़ी चाहत थी मेरीक्यूँ मौत की नींद में सुलाती है जिंदगी। ” काजल सोनी “
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बहुत खूबसूरत काजल …………………..हंसती को हंसाती लिखे तो ज्यादा प्रभावी होगा !
हंसाती ही लिखा था मैंने typing में गलती की वजह से हंसती हो गया था निवातिया जी….
उत्साह वर्धन प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से कोटीस आभार आपका…….
बहुत सुन्दर रचना के बधाई काजल जी…….
तहे दिल से बहुत बहुत आभार आपका मधु जी…..
काजलजी….भाव अच्छे हैं पर रचना में तारतम्य की कमी है ….निवतियाजी ने जो कहा हंसाती होना चाहिये… और …
खोई थी मै तो इश्क के आगोश में
इश्क क्या है ये समझाती है जिंदगी ।
(आपकी पहली पंक्ति और दुसरे में तारतम्य समझ नहीं आया मुझे…एक ही तो बात है दोनों में…जब पहले ही इश्क़ में हो…तो ज़िन्दगी का इश्क़ समझाने का मतलब नहीं समझा…)
शख्सो के कितने चेहरे दिखाती है जिंदगी।
(होना चाहिये ‘हर शख्स के कितने चेहरे’ या हरेक शख्स )
जीने की तेरे संग बड़ी चाहत थी मेरी
क्यूँ मौत की नींद सबको सुलाती है जिंदगी।
(पहली पंक्ति में अपनी बात हो रही है …दूसरी में ‘सबको’ किस लिए….तारतम्य सही नहीं है…)
आप मेरी रचना पर एक बार फिर से नजर करे
कुछ बदलाव किए हैं मैंने…….
तहे दिल से आभार आपका शर्मा जी…….
behtar hai kaajal ji….bahut khoob….