दोस्ती में झगडे का ये अफसाना क्या है,नही समझता है जब कोई तो फिर समझाना क्या है,कहतें हैं धागा टूटे तो गांठ पड जाती है,यही सोच लिया तो उलझे धागों का सुलझाना क्या है,कहते थे दोस्ती के नाम जान हाजिर है,भूल गए जब कसमें तो फिर कसमें खाना क्या है,भूल गए वो देर रात तक मयकदे में मय पीना,जहां दरिया कम पडता था तो फिर पैमाना क्या है,कहता है योगी यारो फिर से गले मिलो,जो हो गया सो बीता उसको दोहराना क्या है,
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जोगी जी… अगर आप इसे ग़ज़ल के रूप में देख रहे हैं, तो थोड़ी इसके गणित पर भी ध्यान रखें। इसके मकता और मतला….. वहर को भी….. भाव और सारे अर्थ भी ठीक लग रहे हैं बस थोड़ी मेहनत….. बब्बू साहब भी आपको indicate किये हैं। अन्यथा न लें।
Thanks for your valuable suggestions
gajab bhav hai apki rachana me……..bindu ji ki pramarsh pr dhyan de ske to sone pe suhaga hai,
plz read……… sadbhavna…
Thanks a lot
अति सुन्दर……..
thank you Shishir Ji
khoobsoorat……………
Thank you very much
बहुत ख
Thanks a lot Kajal Ji
बहुत खूब……..
Thanks for your kind appreciation