Homeतुलसीदासमैं हरि, पतित पावन सुने मैं हरि, पतित पावन सुने विनय कुमार तुलसीदास 28/03/2012 No Comments मैं हरि, पतित पावन सुने। मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥ ब्याध गनिक अगज अजामिल, साखि निगमनि भने। और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥ जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने। दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥ Tweet Pin It Related Posts ताहि ते आयो सरन सबेरे ते नर नरकरूप जीवत जग कौन जतन बिनती करिये About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.