जबसे तुम गये हो लगता है की जैसे हर कोई मुझसे रूठ गया हैहर रात जो बिस्तर मेरा इंतेजार करता था,जो दिन भर की थकान को ऐसे पी जाता था जैसे की मंथन के बाद विष को पी लिया भोले नाथ नेवो तकिया जो मेरी गर्दन को सहला लेता था जैसे की ममता की गोदवो चादर जो छिपा लेती थी मुझको बाहर की दुनिया सेआजकल ये सब नाराज़ है, पूरी रात मुझे सताते हैजब से तुम गयी हो …रात भी परेशान है मुझसे, दिन भी उदास हैशाम तो ना जाने कितनी बेचैन करती हैवो गिटार जो हर रोज मेरा इंतेजार करता था आजकल मुझे देखता ही नहीआज चाय बनाई तो वो भी जल गयी, बहुत काली सी हो गयीलॅपटॉप है जो कुछ पल के लिए बहला लेता है मुझे सम्हाल लेता हैपर वो भी फिर कुछ ज़्यादा साथ नही निभाता ||सब 2 दिन मे बदल गये है मुझसे, जब से तुम गयी हो….
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Vyathith man or tan ki sundar abhivyakti Shivdutt……
bahut bahut aabhar sir aapka..
सुंदर भाव……. सुंदर रचना….. शिवदत्त जी…..
बहुत सुंदर अनुभूति शिवद्त जी ।