जलता है दीया…..चला है खुद जलकर दुजो को रौशन करने….दिखता नहीं उसे अपने ही तले का अंधेरा……पुछने पर बड़े प्यार से बोला…..जलाती है जिंदगी सबको मेरी तरह…..मिलेगी कलेजे को कुछ तो ठंडक….दुसरो का अंधेरा मिटा कर….मैं अपने ही तले का अंधेरा…. उम्र भर नहीं मिटा सकता….गर मिली किसी की दुआ…… तो ये पल भर में मिट जायेगा…. *** काजल सोनी ****
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अवलोकन करिये आप कृपया….स्पष्ट नहीं है…..जैसे “दिखता नहीं उसे दीया तले का अंधेरा” अपने तले का अँधेरा होना चाहिये…इसी तरह से आगे भी….confusion सा हो गया मुझे…..
शर्मा जी आप एक बार फिर से नजर करे……
मैंने आपके मार्गदर्शन पर कुछ सुधार किये हैं….
Priy kajal agat rachnaa kaa ant bhi doosre jalte deepak ke madhyam se karo to mere anusaar rachnaa aur bhi umvhe darje ki ho jaaegi . gaur karna…..
सुधार करने के बाद एक अच्छी रचना बनती दिखती है, पर अंतिम दो लाइन सटीक नहीं लगता। यह मेरी सोच है। शायद मैं ही नहीं समझा।
Nice
अति सुंदर आपने ……….बहुत पुरानी कहावत है शायद आपने सुनी है या नहीं कि “कबाड़ी की छान में फूंस” नहीं मिलता या “नाई अपनी हजामत खुद नहीं कर सकता” आदि आदि इस बात कि और इंगित करती है कि संसार में सम्पूर्ण कोई भी नहीं ……..सभी एक दूजे का आधार है……..पूर्णता के लिए सहायता आवश्यक है !
बेहतरीन काजल जी………………….