मेरे होटों पे अभी तक है तबस्सुम के सिलसिलेगयी रात मेरे ख्वाबों में वो जो हमसे आ मिलेमुझको तो एक पल की भी फुर्सत नहीं तुझसेतुझको कहाँ से है मुझसे इतने शिकवा-गिलेआये हो मेरे पास तो बैठो दो चार पलदो चार पल ही सही जीने को कुछ तो बहाना मिलेऐसे तो मेरे मर्ज़ की कोई दवा नहींवैसे अगर तू देख ले तो चेहरा मेरा खिलेमुनासिब है फासलें हो यूँ ही दरमियान अपनेकहीं क़ुर्बतों के बढ़ने से बढ़ जाए ना मुश्किलेंजिनको समझ रहा था मैं हमराज़ हमकदमबदली रुतें तो वो मेरे मुखालिफ से जा मिलेतेरे तस्सवुरात में कुछ भी न हो मेरे सिवामुझको मेरी वफ़ा का कुछ तो सिला मिले
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Ati sundar Dr. Nitin……..
Bahut bahut dhanyawaad sir
बहुत सुंदर नितिन जी… दूसरी रचनाओं पर भी अपनी प्रतिक्रिया दें… धन्यवाद।
Bahut bahut dhanyawaad
बेहद खूबसूरत…. मुझे लगता यह पंक्तियाँ कुछ ऐसे होनी चाहिये थी…दो चार पल दोनों पंक्तियों में खटकता है
आये हो मेरे पास तो बैठो अभी दो चार पल
ज़िन्दगी को जीने का कुछ तो बहाना मिले
Bahut achha laga aapki pratkriya padhkar. Pehle kuch aisa hi likha par bhaw wo nahi aa rahe the jo main likhna chah raha tha
wah……khoob likha hai apne…….
मित्र एवं आए हैं…..ko padkr apni pratikriya de…
Bahut bahut dhanyawaad
बहुत ही खूबसूरत………..
thank you kajalsoni ji