एक प्यली चाय की चुस्की के साथजैसे कोई अतिथी जाने की बातें करता हैं ।वैसे ही ए ऋतु राज वसंत तुम भीएक लंबे अंतराल के बादमुझसे मिलने आते हो।और आने के साथ हीजाने की बात करते हो।तुम्हे हमारी क्या चिंता ?तुम्हे तो राजा का मतलबभी नहीं पता ।क्यो कि तुम आने से पहलेनोच डालते हो पत्ती पत्तीउजाड़ देते हो टहनी टहनीनंगे कर डालते हो पेड़ पौधे।फिर भी नन्ही कोपल फूटना नहीं छोड़तीगेहूँ की बालियां चमकना नहीं छोड़तीऔर धरती अपनी बाहे पसारतुम्हारा स्वागत करना नहीं छोड़तीतुम्हारे डर से ।तुम राजा हो नाडराना तेरा स्वभाव हैऔर न डरना मेरा स्वभाव।जानते हो ऋतु राज वसंतराजा का मतलब बहुत गहरा होता हैऔर तुम जो करते होव राजा का स्वभाव नहीं होता।क्यो कि राजा से भी ऊपरकुछ तो होता होगाजिसके सम्मान में तुम्हेंधरती पर आना होगा।क्यो कि तुमसे पहले भीपूरी पांच ऋतुएधरती पर आई।और मेरे ऊपर एहसानउनका रहा तुम्हारा नही।तुम तो आए और चलते बनेया आए भी की नहीमुझे पता नहीं।लेकिन एक दिन तुम्हें आना होगामेरी धरती पर राजा बनकर नहींउन ऋतुओं की तरहजिसने एहसान किया है हम पर।और तब मे तुम्हारा स्वागतखुले दिल से बाहे पसार करकोयलकी कुक पपीहे के पीहुऔर सरसो की क्यारियो के बीच करुगीए ऋतु राज वसंत।Bhawana kumari
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मन के द्वन्द भी अजीब होते हैं….वो राजा के रूप में हों या पतझड़ के….सही कहा आपने….डरा के रिश्ता जो बनाता है वो टिकता नहीं हैं दिल तो प्यार ही हरता है…वही रिश्ता स्थायी है…..
बहुत बहुत शुक्रिया।
bahut khub bhawna jee wastavikata ko chhuti achchhi rachna.
बहुत बहुत आभार आपका
Man bhaavon kaa achcha chitran………
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Sundar Rachna, Bhawana ji…
धन्यवाद सहित आभार आपका
बेहद खूबसूरत……… भावना जी…….
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत बढ़िया भाव आपकी रचना मे भावना जी…………
बहुत बहुत आभार आपका