नूर हूँ मै
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तेरे मुखमंडल की आभा सेप्रज्वलित होता दीप हूँ मैंतेरे ही आशीर्वचनो सेफलीभूत होता आशीष हूँ मैतुम कारक, कारण तुम हीतुम से उपजा बीज हूँ मैतेरी ज़िन्दगी का सफ़र मैतेरी गर्दिशों की धूप हूँ मैमुझको डरना कैसा मुश्किल से जब तक तेरे प्रेम कवच के समीप हूँ मैये तन-मन सब तुमसे है मेरी माँइस जग में तेरी ही आँखों का तो नूर हूँ मै !!
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डी के निवातिया
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बेहतरीन……….अप्रतिम……..नमन आपको….
निशब्द हूँ मैं मेरी लेखनी भी निशब्द है…
मात पिता का मेरा रोम रोम कर्तज्ञ है…
कैसे ब्यान करून मैं खुदा को जहां में…
मात पिता के चरणों में ब्रह्माण्ड निहित है…
आपके मनोभावों से मन भावुक हो उठा …………धन्य आप जैसे गुनीजन जो टूटे फूटे शब्दों को इतना सम्मान देता है ………..ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका बब्बू जी !
Behad sundar Nivatiya Ji …………..
..ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका शिशिर जी !
बेहद बेहतरीन रचना ….
कृपया मेरी रचना “मोहब्बत फिर से उछलेगी ” पर अपनी प्रतिक्रिया दे
धन्यवाद आपका मनुराज वार्ष्णेय……..अवश्य….. हमारी कोशिश होती है की सभी की रचनाओं को पढ़े ! !
बिलकुल सही कहा आपने सर। बहुत बहुत खुबसूरत रचना।
ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका भावना जी !
बहुत खूब
ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका अरुण जी !
Bahut hi sundar rachna, Nivatiya ji…please read my poem “काश, ऐसे भारत का निर्माण अब हकीकत हो”…
.ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका अनु जी …….अवश्य ऐसा कैसे हो सकता है की आपकी रचनाओं को न पढ़े !
bahut sunder nyari baat aapne apni rachna mein prastut kiye ……..aapko badhai ho aisi bhavna rakhne ke liye aour samaj ke samne paroshne ke liye.
.भावो को मान देने के लिए शुक्रिया आपका ………..ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका बिंदु जी !
अत्यंत सुंदर रचना…….. निवातिया जी…..
ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका काजल जी …!
बहुत खूब निवातिया जी…………………
ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद आपका मधु जी ….!