मुझे मालूम है तू आज भी मुझसे नाराज हैमुझे न है पता कुछ भी मेरे दिल की आवाज है
भले सिर पर मेरे रखा कोई शोहरत का ताज हैमगर दिल तो मेरा तेरी मोहब्बत का मोहताज है
खुदा लौटा दे वो सावन जो फिर मोहब्बत को बरसा देकोई बादल हो जो उसको मुझे पाने को तरसा दे
तुझे पाने की चाहत में दीवाने यूँ हुए जानमन सुध खुद की कोई अब है बेगाने सब हुए जानम
तेरे नाम से चिढ़ाकर मुझे सब परेशान करते हैभिगोकर मेरे नैना को बेचैनी उत्थान करते है
ओ पंछियों घुम्मकड़ बादलों हवा का रुख बदल देनाजब जब दीखे जो मेरी जान मोहब्बत से मचल देना
जो मचलोगे मोहब्बत से सामने उसके बारम्बारमोहब्बत फिर से उछलेगी तो आएगी याद मेरी हर बार
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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बहुत सुन्दर।
Sundar rachna….
बहुत सुंदर प्रस्तुति मनुराज जी।
बहुत ही खूबसूरत……… मनुराज जी……..
बहुत सुन्दर रचना मनुराज……………