फिर भी गर्व से फहराहता हूँ मैं तिरंगा !Happy Republic Day to all.वर्षों से Republic Day पर गर्व से फहराहते हैं हम तिरंगा ,ईश्वर करे अमर रहे हमारा ये लहराहता हुआ तिरंगा ।कभी कभी मेरे दिल में यह ख़याल आता है ,Republic Day का लुत्फ़ उठाने को जी चाहता है,लेकिन ,चारों तरफ़ देख के यह मलाल आता है ।ग़रीब लाचार और बेबस देश का किसान ,आधार कार्ड में डूंड रहा है अपनी पहचान।एक तिहाई देश सो रहा है , अभी भी भूखा और नंगा ,फिर भी गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि मुझे अपनी देश भक्ति पर है नाज़ ,राष्ट्रीय ध्वज ही है मेरी देश की लाज ।प्रदूषण रूपी बाणों की है शैया,उस पर साँसे गिनती मेरी गंगा मैया।मेरी ही मैली करतूतों से प्रदूषित हो गई माँ गंगा,फिर भी गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि मुझे अपनी देश भक्ति पर है गर्व,Republic day है मेरा राष्ट्रीय पर्व ।Republic Day मेरे लिये एक extra Sunday,नहीं तो पिकनिक मनाने का एक holiday,Road rage से जहाँ देश में रोज होता है पंगा ,फिर भी गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज ही है मेरे देश की पहचान,इसे फहराने से बढ़ती है , भारतीयों की शान ।Rape, murder , snatching and robbery हो रही चलती सड़क पर,तरस आता है मुझे अपनी झूठी अकड़ पर।सही राह पर चलने में जहाँ है अडंगा ही अडंगा,फिर भी गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि पढ़ी है मैंने स्वतंत्रता संग्राम की अमर कहानियाँ,याद आती हैं मुझे भगत सिंह जैसे शहीदों की कुरबानियाँ ।देश में कितना बढ़ गया है air pollution,नहीं मिल पा रहा है इसका कोई solution.मेरे स्वार्थ में नहीं पड़ना चाहिए कोई पंगा,पर गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि मुझे अपने वीर सैनिकों पर है गुमान,राष्ट्रीय ध्वज के ख़ातिर ही दे रहें है वो अपनी जान ।जंगल जंगल पेड़ कटे, खेत और खलिहान घटे,शहरों में छाई concrete की उदासी ,Pollution बढ़ा , बढ़ी allergy और खाँसी ।विकास लोभ में जल रहे सब , जैसे दीपक मोह में जले पतंगा ,फिर भी गर्व से फहरा रहा हूँ मैं तिरंगा ।क्योंकि इस से ही बंधी है एक आस ,सबका साथ सबका विकास ।।
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भावभीनी श्रद्धांजलि अपने देश तिरंगा को। कोटी कोटी नमन उन शहीदों को जिसने हमें आजादी दिलवाई। बहुत सुन्दर आपकी रचना।
बहुत ही सुन्दर रचना है सर। गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुन्दर भाव सतीश जी …….आपका चिंतन सात्विक है……इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहा जाये की इतनी समृद्धि और तकनिकी का बाबजूद हम बुनियादी समस्याओ से लड़ने में अक्षम रहे है।
बिलकुल सही कहा आपने…..आप को भी गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें….
गणतंत्र दिवस पर आपके उदगार देश की वास्तविक समस्याओं से अवगत करा रहे हैं। बहुत ही सामयिक रचना। साधुवाद।
बहुत बढ़िया………. शतीश जी….