काश ! हम बच्चे ही होते….दिल से हम फिर सच्चे होते….न कोई होता वैरी अपना…न हम किसी के दुश्मन होते…काश ! हम बच्चे ही होते….सुबह सुबह नहीं उठते जब हम…डांट रोज़ माँ की फिर खाते…झूट मूठ हम भी रूठ जाते…माँ के मनाने में प्यार हम पाते….काश ! हम बच्चे ही होते….नाम किसी का अपना न होता…कोई तोता कोई मैना होता…गधे किसी को हम बना के…उसकी पीठ पे लदे फिर होते…काश ! हम बच्चे ही होते….स्कूल में हम पढ़ने जाते…मन में लिए शरारत होते…निकाल किसी का खाना…चोरी से हम खाते होते…काश ! हम बच्चे ही होते….बेशक होते हम खुराफाती…पढ़ते और शरारत करते…पर किसी को न गाली बकते…इज्जत माँ बाप की करते होते…काश ! हम बच्चे ही होते….घर हो चाहे पडोसी का ही…अपना समझ के आते जाते…आँख नाक सिकोड़ते न हम…गर वो हमसे थोड़े छोटे होते….काश ! हम बच्चे ही होते….भेद भाव मन में नहीं होता…जाती धरम का नर्क न होता…राम रहीम के भारत में फिर…’चन्दर’ हम सब भारतीय होते..काश ! हम बच्चे ही होते….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)(सभी को गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें…दिल से हम सब भारतीय होने का प्रमाण दें यही कामना है मेरी)
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सर आपने हमें अपना बचपन याद दिला दिया। सचमुच व दिन क्या हुआ करते थे जब हम सब खूब शरारत किया करते थे। काश…………व दिन फिर से वापिस आ जाए तो ……….।बहुत बहुत खुबसूरत रचना है सर। आपको भी गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
Bhawanaji…तहदिल आभार आपका…दरअसल जब आपकी रचना ‘छोटी बच्ची’ पढ़ी तो उसके बाद ख्याल आया लिखूं…आप का आभार उस रचना को पढ़ कर मेरी रचना बानी…हाहाहा…
बालपन को फिर से जीवंत कर दिया आपने ….बस यूँ समझ लीजिये ……….
बचपन तो बचपन ही होता
कभी रोता है कभी हँसता है
न फ़िक्र कोई दुनियादारी की
मद मस्त चैन की नींद सोता है !
शायद आपने इस विषय पर मेर कृति.. ” चलो फिर एक बार …… बचपन में जी लेते है !! ” एवं ” कितने निराले थे वो बचपन के खेल !! ” नामक शीर्षक रचनाये नजर नहीं की ……समय मिले तो नजर कीजियेगा शायद आपके ह्रदय तक पहुँचने में सफल हो सके !
जी जरूर…..मेरा सौभाग्य है जो आप जैसे गुणीजन का साथ मिला है और रचनाएं पढ़ने का मौका मिलता है….तहदिल आभार आपका….Nivatiyaji…
bachpan ke din wapas yaad aagaye. bahut sundar rachna, Sharmaji…
तहदिल आभार आपका….Anuji….
Well said. Happy Republic Day Babbu ji ……
तहदिल आभार आपका….Madhukarji…
सचमुच आपने मेरा बचपन याद दिला दिया…..
बस एक जगह आपने लिखा है…कि… पर किसी को न गाली बकते…… ये मुझ पर नहीं गया….. हा हा हा हा हा हा हा
बेहतरीन रचना…….. शर्मा जी…..
हाहाहा….आप अपने को अलग रख के रचना पढ़ें…तहदिल आभार आपका…Kajalji..
बब्बू जी ढेरो बधाई जो आप मन से बच्चों को याद करके उनकी शरारत अपनी लेखनी में उकेर दी। आप को मेरी ओर से गणतंत्र की हार्दिक शुभकामना। जय हिंद।
तहदिल आभार आपका…..Binduji….
वो कागज की किश्ती वो बारिस का पानी
याद दिला दी बब्बू जी वो हरकतें बचकानी
तहदिल आभार आपका….Ram Gopalji….