जब मैं एक छोटी सी बच्ची थीगुड़िया संग खेला करती थी।एक दिन माँ ले गई मेले मेंजी मचला रंग बिरंगी गुड़िया देख।Jeb थी खाली खाली माँ की पोटलीदिल में थी हसरत हजार।और लेना था गुड़िया बोलने बलीमाँ दिला न सकी वह गुड़िया मुझे।लौट आई मैं घर चुपचापजब मैं एक छोटी बच्ची थी।गुड़िया संग खेला करती थीअब बीत गए हमारे व दिन बचपन के।पर आज भी मेला लगा है शान सेमेले में फिर रंग बिरंगी गुड़िया देखजी चाहता है खरीद लु व गुड़िया मैं।पर अब व बचपन का अल्हड़पन कहाँअब मैं व छोटी सी बच्ची कहाँ।जब मैं एक छोटी सी बच्ची थीगुड़िया संग खेला करती थी।Bhawana kumari
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भावनाजी…..आपने न जाने कितने बच्चों के मन की व्यथा भर दी है इसमें……बेहद भावपूर्ण रचना है आपकी….पर मेरा मन कहता है की हर कोई बच्चे जैसा मन ही रखे तो अच्छा है….राग द्वेष ख़त्म होगा..बचपन में जब लौटेंगे तो….
बहुत बहुत आभार आपका इस रचना को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए।
बाल मन की व्यथा सुंदर वर्णन ……..भावो को जस का तस रख दिया आपने ……….निर्मल मन के आगे सब कुछ हार जाना स्वाभाविक है !………………………अन्यथा कविता के रूप में और बेहतर कर सकती थी आप ………!!
तहे दिल से शुक्रिया आपका। सर सचमुच मैं इसमें बेहतर करना चाहती हूँ पर केसे समझ में नहीं आ रहा है । आप अपना सुझाव दें कि एसा क्या करूँ जो मैं बेहतर कर सकूँ। आपके सुझाव का मैं इन्तजार करुगी।
भावना जी मेरे विचारों को मान देने के लिए धन्यवाद आपका……… वैसे तो मैं भी आपकी ही तरह साहित्यकी का विद्धार्थी हूँ…….. हाँ एक सहपाठी की तरह अपने विचार अवश्य साझा करना पसंद करता हूँ ……।
जहां तक रचना का विषय है यह आवश्यक नही की किसी विधा में बांधकर ही रचना को उत्तम बनाया जा सकता है। सामान्य रूप में में भी किसी रचना को बेहतर बनाने के लिए ह्रदय के भावो को शब्दों के सही तालमेल,तारम्यता, गेयता एवं उचित चयन के माध्यम से रचना को सजाया जा सकता है ।
उदहारण स्वरूप आप ही के शब्दों को आपके ही भाव में रखने का तुच्छ सा प्रयास करता हूँ शायद आपको अच्छा लगे।
जब मैं एक छोटी बच्ची थी
गुड़िया संग खेला करती थी।
माँ के संग जब भी मेले जाती
देख रंग बिरंगी गुड़िया मुस्काती थी।
बोलने वाली गुड़िया मैं भी लेलूं
उसके संग मैं जी भरकर खेलूं ।
माँ की जेब थी बिलकुल खाली
दिला न सकी गुड़िया बोलने वाली ।
अपने मन की हसरत मन ही लिये
खाली हाथ लौट आयी घर के लिये…………………..
आप चाहे तो इस प्रकार पूर्ण रचना को व्यवस्थित कर सकती है……..।
पुनश्य धन्यवाद आपका।
सर आपके सुझाव क
आपके सुझाव का तहे दिल से शुक्रिया तथा अपना सहपाठी कहने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। सर मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूँ व यह की पत्र पत्रिकाओं में आपनी रचना केसे प्रकाशित करुँ। इसकी जानकारी भी हमें दे। आपसे विनम्र निवेदन है।
bahut sundar bhav , ..
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ANU Mam.
Beautifully expressed……..
धन्यवाद सर हमारी रचना पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए।
बहुत ही सुंदर…… मार्मिक भाव के साथ……
बहुत बहुत आभार आपका।
अच्छी सुंदर कृति… बचपन को याद दिलाती सुंदर रचना।
धन्यवाद सर।