💐बसंत 💐…मधु तिवारीपूछे बसंत कहाँ पर आऊँबोलो किस स्थल लहराऊँघर बने भूमि बाँट-बाँट करचमन पौध को काट-काट करवहाँ कहो कैसे मुसकाऊँपूछे बसंत कहाँ पर आऊँवन है न कोई बाग बगीचाशहर मे मुझे न कोई सींंचाखिलूँ कहाँ, कहाँ इठलाऊँपूछे बसंत कहाँ पर आऊँपहले जैसा गांव नहीं हैवहाँ भी मेरा ठाँव नहीं हैउन्हें भी क्या बोध कराऊँपूछे बसंत कहाँ पर आऊँमैं प्रकृति का उपहार हूँतुम सबसे करता प्यार हूँपर ये उपेक्षा सह न पाऊँपूछे बसंत कहाँ पर आऊँमदन-रति को न भाते होवेलेंटाइन डे मनाते होव्यथित इससे मैं हो जाऊँपूछे बसंत कहाँ पर आऊँ✍🏻श्रीमती मधु तिवारी, दुर्ग, छत्तीसगढ़💐💐💐💐
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दोबारा पोस्ट हो गयी है …!
ji sahi kaha apne…… dobaara post ho gya h pta nhi kese ….
वर्तमान की व्यथा का प्रतीक माध्यम से सटीक चित्रण ।
hardik aabhar paka……
बेहद खूबसूरत बसंत के रंग मधु जी।
धन्यवाद शर्मा जी………….