भोर की किरणेंऔर उजाला निशा के चुंगल से जैसे बंद खिड़की केशीशे से होकरमुझ तकआ रही हैंक्या वैसे हीमेरे विचारों कीऊष्मा और गहनतातुम्हारे मन तकपहुँच पाएगीमेरा रोम-रोमजिस तरह जी उठा हैकिरणों के आगमन सेक्या तुम्हारा मन भीअकुरिंत होता हैमेरे इनभावुक शब्दों सेजैसे ये किरणेंमेरे अंतर्मन कोसहलाती हैंक्या मेरे विचारों कादिवाकरतुम्हारे कोमल ह्रदय कोबहलाता ?यदि हाँ, तो आज अभीमन की खिड़की खोलोइन शाब्दिककिरणों सेओत-प्रोत होकरआगमन करोनव प्रभात !नव लालिमा नये दिन का… कपिल जैन
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ati sundar……………
आदरणीय शुक्रिया
very Nice……….!
Thanks sir
बहुत सुन्दर…….!!