उम्र भीता ज़िन्दगीमेरे साथ ही चलीमैं थक गया वोनहीं थकीकहे चल औरअभी तो सांसउखड़ने कावक़्त है औरकि अभीसफर कीरात और हैतेरे हिस्से मेंजान और हैयूं बैठा तोलुट जाएगाअंत से पहलेमिट जाएगाफर्क नहींकौन जीताकौन मरता हैहर कोई अपनापेट भरता हैतेरे हाथ सेलाठी ले लेंगेअपनी काठीतुझे दे देंगेबोझ से तू नरुक पायेगान चल पायेगाउठ चल केअभी वक़्तबाकी हैतेरी साँसों कासफर अभीबाकी है\/सी.एम्.शर्मा (बब्बू)
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Wah! bahut khub Sharma Sahab
तहदिल आभार आपका……Rajeevji….
Bahut khoob Babbu ji …..
तहदिल आभार आपका…..Madhukarji….
Bahut sundar rachna, Sharmaji…
तहदिल आभार आपका….Anuji….
ऐसी दार्शनिक रचना आपका ही हो सकता है सर….
तहदिल आभार आपका…..Madhuji….
बेबसी, लाचारी, विषमताओं में फसी जिंदगी ऐसी ही होती है, अंत सबको मालूम है फिर भी जीवन प्रयत्न उलझे रहना ही इंसानी फितरत है जो नियामत रब ने बख्शी है ………जो भी हो …अपना कर्तव्य पूर्ण करना ही इंसानियत का फर्ज है ……………बहुत सही कहा आपने ……..अति सुंदर !
सही कहा आपने….कर्तव्य निर्वहन ही सबसे बड़ा धर्म है….तहदिल आभार आपका….Nivatiyaji….
बहुत ही बढ़िया…….. शर्मा जी……
तहदिल आभार आपका…..Kajalji….