अफ़सोस न कर
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मेरे वतन के हिस्से ये सौगात हर बार मिली है !कभी गूंगो की कभी बहरो की सरकार मिली है !!
किसी में हुनर सुनने का, किसी में सुनाने काआज इसी में उलझी राजनीति लाचार मिली है !!
अफ़सोस न कर दरिंदगी पर आज के दौर मेंखुद को देख तुझमे ही ह्या शर्मशार मिली है !!
जब जब भी उठे सवाल यंहा गुनाहगारो परसियासत बनकर उनकी पनाहगार मिली है !!
आ हम भी चलते है, कुछ दुआए बटोर लाते हैसुना है रब के दर खैरातियो की लार मिली है !!
मजहब का चोला पहनकर, ईमानदार मत बनतेरे जैसे कितनो की रूह यहां गुनेहगार मिली है !!
बात किस किस की करेगा “धर्म” इस बाज़ार मेंशैतान के हाथ खुदा की चौखट लाचार मिली है !!
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डी के निवातिया
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निशब्द हूँ आपकी कलम…आपके भावों पे….दर्द को ब्यान करती…नकाब के पीछे चेहरों को उजागर करती बेहतरीन कृति…
आपकी रचना में दिल का दर्द उभर आया है…
हर किसी को अपना ही चेहरा नज़र आया है…
गूंगे बहरों की जमात में अपने रेवड़ी खाएंगे…
काबलियत को तो राख के ढेर ने दबाया है…
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..BABBU JI!
Apne kya khub likha hai “किसी में हुनर सुनने का, किसी में सुनाने का
आज इसी में उलझी राजनीति लाचार मिली है !!” Sachchai ko ukerti bahut hi khubsurat Rachna
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..RAJEEV JI
Bahut khoobsoorat or aaj ke vaastvik haalaaton par chot kartee rachnaa Nivatiya Ji ……………….
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..SHISHIR JI
Bahut hi sundar, Nivatiya ji….
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..ANU JI.
बेहतरीन रचना आपकी सर…………।
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..MADHU JI.
अत्यंत सुंदर रचना….. निवातिया जी…..
ह्रदय को प्रफुल्लित करती आपकी अमूल्य प्रतिक्रया के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद …………..KAJAL JI.