कितने भोले प्यारे बच्चेहाथो में किताब की जगहलेकर घूमते bore है ।उन bore में कचरे चुन चुनदिन भर करते मेहनत हैआंखों में है सिर्फ़ विवशताभुखे पेट व सोते हैं ।उनकी भी होती है इच्छाSchool college जाने कीपर व कहते है सबसेहम तो भाग्य के मारे है मेरा भाग्य कौन लिखेगाजब सरकार ही छल कपट में हैनहीं है मेरा ठौर ठिकानासड़क के किनारे sote हैं ।एक वक्त का खाना खा करdushit पानी पीते हैहम भी है इन्सान के बच्चेपर न घर में रहते है ।Bhawana kumari
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marmik rachana bhavna ji………..
धन्यवाद आपका।
सही सवाल उठाया है आपने….पर इसका हल भी शायद कभी निकले…
काश……… व समय जल्दी आ जाए। बहुत बहुत आभार आपका।
bade hi sanvedansheel pahlu ko chhuaa aapne………….dar-asal ye kuchh aisi vishmtaaye hai jinkaa hal svam insaan ke haath me hai…….inka ant to mumkin nhi lekin sudhaar avshay kiyaa jaa saktaa hai …………..ye maanviy jeevan ki wo samsyaaye hai …jinka hal kisi bhi YUG me nahi ho saka hai………!
हल नहीं हो सकता पर अगर हर इन्सान चाहे तो प्रयास कर सकता है ।बहुत बहुत धन्यवाद आपका इस सराहनीय प्रतिक्रिया देने के लिए सर।
BAHUT SUNDER KHUBSOORAT RACHNA BHAWNA JEE……
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
बहुत ही मार्मिक रचना भावना जी…..
हिंदी शब्दों का प्रयोग पुरी तरह किया जाता तो रचना और भी
सुंदर लगती……
बहुत बहुत धन्यवाद।