कितनी सिद्दत से चाहा तुझेहर पल बस चाहा तुझेघर छोड़ा परिवार छोड़ाहुस्न का दीदार छोड़ागाना छोड़ा गुनगुनाना छोड़ातुम्हे पाने की जिद मेंमहीने -महीने नहाना छोड़ाज़िन्दगी हसीं थीजी सकते थे शान सेतुम्हे पाने की खातिरलम्हे–लम्हे का हिसाब रखाकरवटो के संग बस तुझे याद रखादुनिया जब सोती थीफिर भी तेरी खातिर जगा रहानींद को आँखों से दूर रखातू फिर भी मुझे तड़पाती रहीमुझसे दूर हर साल जाती रहीऐ नौकरी तू कब आएगीऐ नौकरी बता तू कब आएगी–अभिषेक राजहंस
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बहुत सुन्दर…………….
Yuva man ki chinta ka sajeev chitran ……..
युवा पीढ़ी की एक बहुत बड़ी परेशानी। बहुत अच्छा।
sahi kaha apne…… samsamyik rachana…….
Beautiful…….!.
मन में उभरी चिंता का सायराना वर्णन….. बहुत खूब