नजाकत छोड़ दी मैंने , अदावत छोड़ दी मैंनेकोई न दर्द पलता अब , जो चाहत छोड़ दी मैंने
जो राहें जाती है तुझ तक , बहुत तड़पन अब देती हैन गुजरता हूँ अब उनसे मैं , वो राहें छोड़ दी मैंने
कहीं माली गया है तो , फूल कोई चुप के से तोड़ा हैअकेले फूल से न भरता मन , वो डाली तोड़ दी मैंने
अज़ीयत ने बताया है , कि पराया कौन है कौन अपनादेख के इस करिश्में को , फितरत में नफरत जोड़ दी मैंने
तेरे दीदार को तरसते थे , अंगारे तन बदन में भडकते थेअब बड़ा ही शांत दिखता हूँ , वो हरकत छोड़ दी मैंने
“मनु” के दिल मे न कोई , “मनु” के मन में न कोईमुनाफा लगता है मुझको अब , वतन से जान जोड़ दी मैंने
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
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बहुत सुन्दर…………….
धन्यवाद विजय जी ….
बहुत बहुत आभार ….
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प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद …..
sundar rachana manuraj………….
धन्यवाद मधु जी …..
बहुत बहुत आभार….
Very Nice ………..!
धन्यवाद निवातिया जी ….
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद …..
बहुत ही बढ़िया….. मनुराज जी….
धन्यवाद काजल जी …