“कहाँ जा रहे तुम इतनी सुबह?” पत्नी ने पति से पुछा….”__________”…..कोई उतर न मिलते देख फिर बोली….”आज माँ दुर्गा का पूजन है, काम पड़ा है…और तुम जा रहे हो…””____________”…”मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूँ, कोई जवाब क्यूँ नहीं देते…आखिर इतनी…””वृद्धाश्रम से माँ को लेने”…बीच में ही उसकी आवाज रुक गयी…जवाब मिलते ही…वो सकपका गयी…”दो महीने के बेटे ने अक्ल ठिकाने लगा दी…अब समझ आया मेरी माँ ने मुझे कैसे पाला होगा…मेरे बाप के न होते हुए भी”…पत्नी की तरफ देखते हुए फिर…”जितनी जल्दी तुम भी समझ लो…उतना ही अच्छा है”….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)…
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gajab……… ati sundar sir……..
तहदिल आभार आपका…….Madhuji…
लाजवाब बहुत खुबसूरत।
तहदिल आभार आपका……Bhawanaji…
बहुत खूबसूरत लघु कथा…. देखन में छोट है… घाव करे गम्भीर। वाह क्या बात है बब्बू जी।
तहदिल आभार आपका…..Binduji…
अति सुंदर काम शब्दों में, गहरी समझ का परिचय देती सुंदर कृति ………..यही सामाजिक ताना-बाना है एक दूसरे से जो एक दूसरे के लिए निहित होता है !
उम्दा कल्पनाशीलता का अच्छा प्रमाण !
तहदिल आभार आपका…..Nivatiyaji….
अति सुन्दर…………
तहदिल आभार आपका……Vijayji…
Ekdam sateek…….
तहदिल आभार आपका…..Madhukarji…
सुंदर रचना शर्मा जी………
तहदिल आभार आपका……Kaajalji…