रूह में उतरकर क्यों अलविदा कह दिये सुकून मिला, जब अपना पता कह दिये। बेचैन होने लगे दिल धड़कने लगा खता क्या थी,लोग हमे बुरा कह दिये। पता ठिकाना बिल्कुल ही सही था मगर उनको ढूंढा, सबने लापता कह दिये । यादें मुलाकातें गुफ्तगू में ही रहा देखकर वे हमें,शादीशुदा कह दिये। बेइंतहा मुहब्बत एक तड़प दे गया घायल दिल वफ़ा होकर,बेवफा कह दिये। उनके चिलमन में पनाह जो थोड़ी मिली थी इश्क की बिमारी,लोग हवा कह दिये।
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बिंदुजी…मुआफी चाहता हूँ मैं पहले….ग़ज़ल के भाव समझ पा रहा हूँ कुछ कुछ क्या कहना चाहते आप…पर रदीफ़ काफिया का निर्वहन नहीं हो पा रहा मुझे लगता….हो सकता आप हिंदी भाषी नहीं तो वो वजह हो…. जैसे कि…
भूल हो गयी कैसी जो खता कह गये।
(भूल और खता का भाव समझ नहीं आ रहा यहां..)
उनको ढूंढा, सबने लापता कह गये ।
(सबने लापता कह दिया तो हो सकता है…कह गये समझ नहीं आ रहा)
मैंने ठीक कर दिया था बब्बू जी…. बहुत बहुत शुक्रिया।
sundar gazal hai……. bhav khoobsurat hai….
बहुत बहुत धन्यवाद मधु जी।
बब्बू जी…. दिशा निर्देश देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया अभी हमने उसे अपने हिसाब से ठीक कर दिया है…. एक नज़र फिर से करें…. सुक्रिया ।
अति सुंदर बिंदु जी ……………बब्बू जी के सुझाव को अपनाते हुए, परिवर्तन में अभी भी काफिया कही पर “कह” और कही पर “कर” प्रयोग हो रहा है, ……….काफिया मेल नहीं खा रहा कृपया गौर करे !
निवतिया जी एक नजर फिर डालें….. बहुत बहुत सुक्रिया।
बहुत सुन्दर…………….
बहुत बहुत धन्यवाद विजय जी।
बहुत ही सुंदर……. बिन्दु जी….