रौशनी के लिए ——————सुबह दहलीज में पड़ी अख़बार नहीं हूँ मैंपढ़ती हूँ सुबह -सुबह जल्दी में और शाम को फ़ेंक देते हो रद्दी के साथ कैलेंडर भी नहीं हूँ जो टांगा रहता है दीवाल के एक कोने में और आने – जानेवाली तूफान पन्ने खुलती है बंद करती है अपनी खुसी से जुड़े में खोंसा सुन्दर सुगंध फूल भी नहीं हूँ जो बाजार और मेलों की भीड़ में जुड़ा से गिरकर धूल में मिल जाती है खिड़की के कांच में लगा धूल हूँ मैंपोंछकर साफ करना होगा तुम्हेंअपने घर में ज्यादा रौशनी की प्रवेश निरंतर करने के लिए तुम्हारी समाज की हवेली में खिड़की की कांच में लगा अन्धविश्वास और अशिक्षा की धूल हूँ साफ करना होगा तुम्हे समाज की हवेली में सुख -शांति और शिक्षा की रौशनी के लिए . ……चंद्रमोहन किस्कू
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behad khoobsoorat………..nav varsh ki dheron shubh kaamnaayein…..
बेहतरीन रचना ……..
नववर्ष की हार्दिक बधाइयाँ
Very very nice. Happy New year.
बहुत सुंदर भाव….
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
बहुत ही खूबसूरत…. नये साल की ढेरों बधाई आपको
Bahut hi sundar rachna….
अति सुंदर …………….नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें