बुढ़ी माँ कोने में बैठी , अपना दर्द छुपाये ।रहीस बेटा बांटें सबको, माँ देख देख ललाये ।छुप छुप के ममता रोये , पर रहती है मुसकाये ।सुखी रोटी बासी सब्जी, मिले जो खुशी से खाये । खुन सींच कर पाला जिसको, अब उंगली कैसे उठाये । छोटी सी गलती क्या होवे ,बेटा बुढ़ी माँ को ही हडकाये। मान न जाने बेटा ही , तो बहु कैसे भाये । अपमान होता देख कर भी , बेटा चले मुंह छुपाये । बुढ़ी माँ किस काम की , दिया कुत्तों की सेवा में लगाये। माँ को आँख दिखा कर बोले , कुत्तों को पुचकाये । हालत ऐसी बुढ़ी माँ की हो गई ,कौन किसे समझाये । सेवा जो बुढ़ी माँ की न करै,वो ईश्वर को भी न भाये । माँ के चरणों से बड़ा जग में , तीरथ कोई न होये । घर उसके दुख दरिद्रता बसे,जिसकी बुढ़ी माँ भुखी सोये। ” काजल सोनी “
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बेहद उम्दा….लाजवाब….सात्विक…………
बेहद बेहतरीन रचना ….. काजल जी
आपको और आपके परिवार को नववर्ष की हार्दिक बधाइयाँ
Bahut sunder rachna.
बहुत सुंदर भाव….
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
Sundar rachna….
Atyant bhavuk …………………
सत्य से परिपूर्ण खूबसूरत रचना !