एक दिन उन्होंने कहा ,मै जा रहा हूँ …..शायद कभी न आऊँ….हमने बड़ी मगरुरी से कहा , ” जैसा तुम चाहो “कुछ दिनों बाद वो लौट आये… फिर एक दिन हमने भी कहा, मै जा रही हूँ …. शायद कभी न आऊँ…..उन्होंने भी कहा , ” जैसा तुम चाहो “कुछ दिन बाद हम भी लौट आये ।फर्क सिर्फ इतना ही ही था ….जाने से उनके इंतजार में हम, खुद को भुला बैठे ।मगर हमारे चले जाने से , वो घर अपना बसा बैठे ।। ” काजल सोनी “
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यथार्थ को चरितार्थ करती खूबसूरत रचना।
तहे दिल से आभार आपका बिंदु जी…….
Dil kaa dard chalakati rachnaa Kajal……..
तहे दिल से आभार आपका शिशिर जी……..
काजलजी…मुआफी चाहता हूँ….मुझे ये रचना आपकी लगती नहीं है…..तारतम्य भावों का सही नहीं लगता… ऐसे लगता प्यार की आजमाईश में लगे हों दोनों….की कौन ज्यादा प्यार करता है….जबकि प्यार में ऐसा कुछ नहीं होता….लफ्ज़ “मगरूरी” मुझे लगता नहीं होता… आपने लिखा है…
“जाने से उनके इंतजार में हम,
खुद को भुला बैठे ।”
जब खुद को भुला बैठे थे….इतना प्यार करते थे खुद की फ़िक्र नहीं थी…तो छोड़ने का भाव कहाँ से…आजमाने का भाव…विरोधाभासी ? विरोधाभासी होना भावों में हो सकता पर उसका एक अपना आभास कराने का तरीका है….फर्क का….आप अपनी रचना को दुबारा से पढियेगा….
शर्मा जी तहे दिल से आभार आपका…..
आपकी बातों का मै आदर करती हूँ…..
पर मुहब्बत में थोड़ी मगरुरी तो होती ही है…
अर्थात कोई बहुत प्यार करने लगे तो निसंदेह
दुसरे के मन में यह पनपता है
लगता है कि वह मुझे छोड़कर
नहीं जा पायेगा या मेरे बिन नहीं रह पायगा…..
….. बस यही मगरुरी है….
रही बात एक दुसरे को आजमाने की
यहां पर कोई मजबूरी भी हो सकती है।
वो मुझे दर्शाना था शायद……
आप तो बहुत ही अच्छे इंसान हैं पर आपके जैसा
हर कोई हो ये जरुरी नहीं….. हा हा हा हा..
रही बात ” फर्क” की तो फर्क प्यार में नहीं
इंतजार में हैं ….. अक्सर ऐसा होता कि एक जाये
तो दुसरा इंतज़ार करता है और दुसरा जाये
तो इंतजार नहीं करे..
जैसे पति जाये तो इंतजार करती है महिला…
पर पत्नी दुर जाये तो पति दुसरी शादी कर लेता ही है
मैंने पहले ही मुआफी मांग ली थी…हाहाहा…मैंने भी कहा की फर्क होता है पर उसको आभास कराने का तरीका अलग हो सकता है…बस…हाँ ये अक्सर कहा जाता की पति चला जाए तो पत्नी शादी नहीं करती… पत्नी चली जाए तो पति कर लेता है…जीने का अधिकार सब का अपना है… किसी पे बंदिश नहीं है…पर पति अगर शादी कर लेता है वो भी तो किसी महिला से ही करता है न..फिर? कहाँ फर्क है…सिर्फ देखने का नजरिया है…
इसके लिए मुझे आप क्षमा करें…
सिर्फ पुरुष ही नहीं महीलाये भी विवाह कर लेती है… जीने का अधिकार है सब को….
पर अधिकतम संख्या भारत में पुरुषों की है
…… और विदेश में दोनों बराबर….
हा हा हा हा हा हा हा…
बहुत बढ़िया काजल ……………अंतत: जो फर्क जानने चाहते थे आप उसका उत्तर मिल ही गया ……………!!
जी.निवातिया .जी …… जिसपर फॉलो करने की सदैव कोशिश रहेगी मेरी…. आपके विचार और प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल आभार आपका
और शर्मा जी का……
Than u very Much KAJAL, pls. put your valuable comments on poetry title as दिवंगतों को मत बदनाम करो
Sundar rachna , Kajal ji…
तहे दिल से आभार आपका अनु जी……
बहुत ही सुन्दर………………………….
तहे दिल से आभार आपका विजय जी….