आवाज़ सिसकियों की दबी -दबी सी है ,हर वक़्त आँखों में अब नमी सी है ,वक़्त अब तन्हां गुजरने लगा हैहर लम्हें में तेरी ही कमी – सी है ,आवाज़ सिसकियों की ,,,,,,,सर्द मौसम की सर्द हवाएं भी अब आग दिल में मेरे यूँ लगाने लगी हैंकतरा – कतरा पिघलता है दिल मेरा याद तेरी मुझे यूँ जलाने लगी हैमर जाएं न हम तेरी याद में सनमतेरे इंतज़ार में ये साँसें थमी -सी हैं आवाज़ सिसकियों की ,,,,,,,स्मृति के पन्नों पर हर – पलतेरी यादों के अक्स उभरते हैंहृदय वेदना के करुण स्वर आँखों से निर्झर बहते हैंतुम आओगे इस आस मेंनज़रें राहों पर जमी -सी हैंआवाज़ सिसकियों की ,,,,,,हृदयगति अब मंद हो चलीसाँसें भी हैं बोझिल-बोझिल खामोश हो रही धड़कन मेरी अँखियाँ भी हैं झिलमिल-झिलमिलअब आकर मुझको बाहों में भर लोसाँसें अब मेरी रुकी -रुकी सी हैंआवाज़ सिसकियों की दबी-दबी सी है,,,।सीमा “अपराजिता “
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वाह ! सीमा जी क्या बात है ……….सुन्दर विरहकाव्य…….
Thanku madhu ji..
बेहद खूबसूरती से दर्द को शब्द दिए हैं…. जनाब गुलज़ार साहब की ग़ज़ल याद आ गयी….
“शाम से आँख में नमी सी है….
आज फिर आपकी कमी सी है”
धन्यवाद आपका ,,,,
बहुत सुन्दर रचना.
Thanku so much sir…
बहुत खूब लिखा है आपने।
Thanku mam…
सुंदर शब्दों से सजी खूबसूरत भाव लहरिया ह्रदय के अन्तस् को छूती है ……….अतीव सुन्दरम…!!
Bahut -bahut dhanywad apka sir …
atyant dard bhari rachna …..
धन्यवाद सर ,,,
बहुत ही सुंदर….. मन को छूती हुई रचना….
……… सीमा जी…….!!
Thanku mam…
Thanku mam..
Thnku mam..
बहुत खूबसूरत अच्छी प्रेम प्रसंग। मेरी दोहे और हाइकु पर भी अपनी प्रतिक्रिया दें।
Thanku sir …