*मन पयोधि..*(अतुकांत)उछल-उछल कर,उथल-पुथल करछूती रहतींतटबन्धों को,अगनित-अगनित भावलिये उल्लास,प्रीति रस।मन पयोधि कीचंचल लहरें।कभी मातृ सा,स्नेह लुटातीसहलाती हैं,हौले-हौले।बात अनगिनत,कर जाती हैं बिन कुछ बोले।हर दुःख हर लेनेको आतुर,मन पयोधि की शीतल लहरें।कभी लूटतीचट्टानों कीदृढ़वत तन्द्रा,करती कठिन प्रहारबहुत कुछकह जाने को।लड़ उठती हैंमौन पड़ा व्रततुड़वाने को।मन पयोधि कीअविचल लहरें।आशा का संचार लिएनव जीवनभाषा सार लिएसिखलातीं लड़नाजूझ जूझ करमिटते जानाया फिरविजयी होना।मन पयोधि कीअविचल लहरें।मन पयोधि में। -‘अरुण’
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Behad sundar srijan Arun……..
सादर आभार।
Bahut Sundar rachna, Arun ji…
आपको नमन
bahut khoobsoorat…………..
सादर धन्यवाद
बहुत खूबसूरत अरुण जी ………. पयोधि का पयार्य अन्वेषण है ……….मन या ह्रदय का अन्वेषण करना ही सबसे कठिन वरन उत्तम कार्य है………..ह्रदय में ऐसे भावो का सृजन सकारात्मक मानसिकता का धोतक है ……..!!
जाकी रही भावना जैसी…..
रचना पर आप के गहरे चिंतन पर नमन
मन की पयोधि में जब अविचल लहरों को पाया
तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने ये कृति को बनाया.
धीर गम्भीर शांत हो जब मन ने मन को दर्शाया,
तब मन पयोधि का यह स्वरूप् चिंतन में आया।
सादर धन्यवाद
अति सुंदर रचना………..!!
धन्यवाद काजल जी।
मैं आपकी रचनाएँ पढ़ता हूँ।एक निवेदन यह कि इतना अच्छा लिखने के बावजूद भी आप कम लिखतीं हैं।।
और लिखें।
सादर
बहुत खूब |
सर सादर आभार
bahut pyari aur khubsurat rachna man ko bha gai ……. badhai ho arun jee,…..
नमन
इन अनमोल प्रतिक्रियाओं के लिए आप सब को सादर नमन
sahi kaha apne arun ji……………….