सत्य का ज्ञान सिर्फ दो ही जग़ह हो पाता है lजब इंसान अस्पताल या श्मशान जाता है llकिसी इंसान का दर्द वो तभी समझ पाता है lजब उसे या उसके अपने को दर्द सताता है llअपनी बीमारी देख, हम परेशान से हो जाते है lअपने आगे दूजे का दुःख, समझ नहीं पाते है llकिन्तु एक बार जब हम अस्पताल पहुंच जाते है lसभी को दुखी देख, अपना दुःख ही भूल जाते है llश्मशान घाट जाते ही हमारी सोच बदल जाती है lसुलगती हुए चिता के आगे सच्चाई नज़र आती हैllसोचते है क्यों हम इतना, पैसो के पीछे भागते है lकितनी भी करे हाय ,अंत में तो सब यही आते है llकिन्तु ठीक होते ही, इंसान सब कुछ भूल जाता है lश्मशान से निकलते ही सोच का रंग बदल जाता है llफिर से वही द्वेष ,ईर्ष्या, लालच के बादल छा जाते है lइंसान के रंग गिरगिट की तरह पल में बदल जाते हैll—————-
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यथार्थ को इंगित करते सुंदर भाव ………!!
Dhanyavad Nivitiya Sahab
Ati sundar or satyparak ……
Dil se Aabhar Shishir Sahab
सौफीसदी सत्य कथन गुप्ताजी….
Dhanyavad Sharma Sahab
श्मशान वैराग्य से बचना मुश्किल है
जिन्दगी की जरूरतों को नकारना और भी मुश्किल है,
जो काबू कर ले मन पर
श्मशान वैराग्य का उसके पास फटकना मुश्किल है,
बहुत सुन्दर रचना है आपकी, बधाई
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ.