अहो भाग्य जो नर तन पावा तरस रहे गण मन जो भावा। योणी श्रेष्ठ मनु रचि डाला तापर कृपा करें प्रतिपाला। माया रूपि लोभ संग छोड़ा निरख परख गुण अवगुण जोड़ा।मन चंचल तन पावन किंहा लोचन लाज हृदय मह दिंहा।उत्तम जीवन मधु करि लेहूं मानव मान सफल करि देहूं। करहुं व्यर्थ नहिं आपन करनी सत्य धरम भव सागर तरणी।
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wah! khoob sharma ji…………..
…badhiya..
बहुत बहुत धन्यवाद मधु जी
सुन्दर शर्माजी..
तहे दिल आभार शुक्ला जी।
waah…..behad khoobsoorat……….
बहुत बहुत शुक्रिया।
Bahut sundar, Bindeshwar ji…
बहुत बहुत शुक्रिया।
अप्रितम बिंदु जी ………शब्द शैली बेहद खूबसूरत है !
तहे दिल आभार निवतिया जी।
बेहद बेहतरीन रचना ……बिन्दु जी ….. बधाई हो …..
कृपया मेरी रचना “महबूब को मुबारक” पर भी अपनी प्रतिक्रिया दे
बहुत बहुत शुक्रिया मनुराज जी।
तहे दिल आभार।
Ati sundar Bindu ji ……
तहे दिल आभार मधुकर साहब।