*शाम का मंजर है ये गुलजार होना चाहिए…*इस जहाँ में नेह का विस्तार होना चाहिए।आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए।हो सुकूँ इतना बसर हो उम्र अमनो चैन से,स्वर्ग से सुंदर तेरा घर-बार होना चाहिए।लाख मुश्किल हो रहें गर्दिश में तारे भी अगर,सच हमेशा ही हमें स्वीकार होना चाहिए।नेक हो नीयत करें खिदमत सभी किरदार की,शौक से इस चीज का व्यापार होना चाहिए।मैं फरेबी हूँ लगाओ लाख इल्ज़ामात तुम,माजरा कुछ भी रहे आधार होना चाहिए।ज़िन्दगी की क्या ख़बर कब अलविदा कह दे’अरुण’आदमी को हर घड़ी तैयार होना चाहिए।सिलसिला चलता रहे कुछ तुम कहो कुछ मैं कहूँ,शाम का मंजर है ये गुलजार होना चाहिए। -‘अरुण’
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bhut khoob arun ji……mere vichar me mukhda bhi do panktiyo ka hona chahiye……..anyatha na le.
मेरी बात को अन्यथा न लीजियेगा।
सादर
आप का हर सुझाव बेशकीमती है।
जी धन्यवाद।
ग़ज़ल विधा में निश्चित बह्र में काफ़िया और रदीफ़ निभाना होता है।
इस ग़ज़ल की बह्र
2122 2122 2122 212 है।
काफ़िया ‘आर’
और
रदीफ़ ‘होना चाहिए’ है।
प्रथम दो पंक्तियाँ ऊला और सानी अपने बन्ध क्रम में हैं।
सादर
सुन्दर..
धन्यवाद सर
अति सुन्दर भावविभोर करती गजल।
सादर नमन
khoobsoorat……………..
धन्यवाद शर्मा जी
Bahut sundar rachna, Arun ji…
कोटि कोटि आभार
बहुत खूबसूरत …………हर शेर कुछ कहता है , जिंदगी का भार सहता है !!
कोटि कोटि आभार
मेरे सृजन को आगे ले जाने में इसे जीवन्त रखने में आप सब का सहयोग रहा है।
इस तरह आपकी अनमोल प्रतिक्रियाओं पर कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।
Behtreen rachnaa Arun ……..
इस ऊर्जा को नमन