आज तुम्हारी बहुत याद आती है माँ।जब भी उदास होती हूँतुम साये की तरह साथ रहती हो maकितनी भी तकलीफ क्यो न होफिर भी खुश रहती हूँ माँ मुझसे प्यार की उम्मीद सभी करते हैपर प्यार के लिए आज तरसती हूँ माँ।जब भी ठोकर खाकर गीरती हूँतो खुद ही अपने को संभालती हूँ माँ जब भी तेरी गोद याद आती हैंतब खुद की गोद में सर रख सोती हूँ माँ।तुमने खुशियो के साथ हमे विदा किया थापर आज हर दर्द में तुम याद आती हो ।जब भी करूं आशा किसी सेतो सिर्फ़ दुत्कार ही सुनने को मिलती है ।जिम्मेदारी जो तुमनें कंधे पर डाली थीउसे पूरा करने की हर कोशिश करती हूँ माँ। सभी को समेटने की कोशिश maaहर रोज खुद ही बिखरती जाती हूँ माँ।सबकी इच्छा पूरी करती हूँपर खुद की झोली खाली रहती है ।सबकी तन्हाइयां दूर करती हूँपर खुद तन्हा होती हूँ तो रोती हूँ माँतब रोज रात को सपनो मेंतुम मेरे सर को चूमब्ती हो माँकहती हो तुम लाडो हूँ मैं तेरीपर क्या अब भी उतना ही लाड करती हो माँ ।
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माँ का लाड प्यार तो कभी कम नहीं होता है….किसी भी हालत में…मैंने तो ऐसा ही महसूस किया है अपनी ज़िन्दगी में…हाँ हमारी अपनी मानसिक स्थिति कभी ऐसी होती है की कम लगने लगता है…वो आतंरिक उलझन हमारी होती है…माँ के प्यार की कमी नहीं….आप की रचना में दर्द ‘सुनायी’ पड़ता है….विवशता… मजबूरी…प्यार का… और मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूँ…औरत में जन्म से ही सहन करने की जितनी ताकत है…पुरुष में नहीं है…पुरुष ऐसी प्रस्थितयों में जल्दी बिखर जाता है…पर औरत इतनी जल्दी नहीं…तभी तो धरती का पर्याय भी कहा जाता है…नमन आपकी भावनाओं को…आपके जज़्बे को…सलाम…
सही कहा आपने सर।आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से कोटी कोटी धन्यवाद।
खुबसूरत भाव आपके द्वारा रेखांकित किये गए है , सुंदर ….
धन्यवाद सर।आपकी प्रतिक्रिया के लिए।
बेहद खूबसूरत भावना जी …माँ की स्तुति में जितना भी कहा जाए सदैव कम ही पड़ता है…….उनके लिए शब्द अपर्याप्त है ………..माँ के प्रति भावनाओ को नमन !!
बहुत बहुत आभार आपका इस रचना को पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए
धन्यवाद आपका सर ।