तेरी आँखों में कहीं, खो गए हैंजागती आँखों में, सो गए हैं।देखकर तुझको मुझे, कुछ ऐसा लगा।बात दिल की तुझसे, मैं कह न सका।आसमां से जैसे ,कोई उतरी हो परी।मेरी धड़कन में बसी, तेरी तस्वीर अधूरी।चलती है जब तू, दिल में उठती है लहर,रूका,रूका सा दिखे, मुझे पूरा तो शहर। पूरी महफिल है यहां, फिर भी बेगाने से हैं।चांद, सूरज भी तो, तेरे दीवाने से हैं।अपनों के बीच भी, अजनबी हो गए हैं।तेरी आँखों में कहीं, खो गए हैंजागती आँखों में, सो गए हैं।बहती नदियों की लहर, तेरी तारीफ़ करें।सुंदर चेहरे पर लाली, भौरें भी आहें भरें।तेरा हंसना भी , मुझे जादू सा लगे।इस जादू से भला, कोई कैसे बचें।वो फूलों सी महक, मुझे मदहोश करे।आंख जब खुली , मेरे सपने थे अधूरे।फिर भी दीवाने तेरे, हो गए हैं।तेरी आँखों में कहीं, खो गए हैंजागती आँखों में, सो गए हैं।रवि श्रीवास्तवरायबरेलीलेखक, पत्रकार।
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रविजी….आपकी रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं पर मुझे लगता तारतम्य की कमी है…जैसे:
देखकर तुझको मुझे, कुछ ऐसा लगा।
बात दिल की तुझसे, मैं कह न सका।
इन दोनों पंक्तियों का मेल नहीं आपस में…देख के कैसा लगा…हाँ अगर आगे की पंक्ति लें तो भाव पूरा करती दिखती…तुकांत के सिवा…जैसे…
देखकर तुझको मुझे, कुछ ऐसा लगा।
आसमां से जैसे ,कोई उतरी हो परी।
आशा है आप अन्यथा न लेंगे…..
सुंदरभाव…………… अतिसुंदर ……….तालमेल और बेहतर कर सकते थे !