प्रिय भाषिणी सु मधुर रागिनी तेरी अंग अंग अमृत सु मधुर मधु मालिनी तूं दानव देव नर swamini रस हासिनी आमोद नृत्यांगणी।-(विहारिणी) विवेक हारिणी सु शुभ आसनी मंद मद गामिणी चंद्र नयन लुभावनी अधर रस तरण तारिणी कोमल पद पंक मंदाकिनी।स्वेत वर्ण मालिनी हृदय भाल विशालिनीअखण्ड ज्योत प्रकाशिणी रणभूमि युद्ध युद्ध मर्दांगिणी त्रिलोक सु मंगल सुखदायिणी चंचल चतुर सुकुमार गजगामिणी।
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
बिंदुजी….बहुत सुन्दर रचना आपकी….पर इसमें कुछ शब्द विरोधाभासी हैं….मुझे लगता…जैसे…
तूं दानव देव नर कामिनी
सु रस वासिनी सत संगिनी ।
Babbu jee एक नजर Phir करें
बहुत खूबसूरत बिंदु जी …………..आनंददायक रचना ……..जहां तक मुझे समझ आया आप कहना चाहते है कि तू दानव, देव और नर सभी के लिए कामिनी है और जिसके साथ भी जुडी उसके साथ सत्य और मन दोनों से मधुरभाव से साथ देने वाली है………..अपितु विरोधाभास यह है कि…. जिनके सम्बन्ध में आप यहां यह स्तुति कर रहे है …उनक लिए यह पंक्ति तर्कसंगत नहीं लगती ………बाकी आपका मंतव्य क्या रहा है …वो आप ही स्पष्ट कर सकते है !
निवतिया जी हमनें कुछ और परिवर्तन करी है कृपया फिर से प्रतिक्रिया दें। धन्यवाद…. ।
खूबसूरत शब्द चयन के साथ भावपूर्ण रचना आपकी शर्मा जी….।