तुममौन होबोलो कुछजानते नहीं तुमतुम्हारे न बोलने सेरिश्ता टूट रहा है हमारादरार पड़ रही है दिलों मेंभगवान् के लिए कुछ बोलोमेरी सुनो अपनी कहो, कभी तो
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एकआत्माचीखती हैपुकारती हैदुहाई देती हैअस्मिता की सबकोपर सब के सब मौन हैंजुबां न खुलती न हिलती हैजंगल में भी सायें सायें होती हैपर यहां शहर के शोर भी मौन हैं
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मौनमन कीअवस्था हैचेतन होने कीअवचेतना से परेविचारों से परिलक्षितअपने को निखारने कीअपने आप को संभालने कीअपने को अपनी बात कहने की\/\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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वाह बब्बू जी बहुत कमाल की गणितीय सर्वेक्षण। अच्छी प्रस्तुति।
तहदिल आभार आपका…..Binduji….
वह क्या पिरामिड बनाये है, सत्य से लबालब ……..वो भी खूबसूरत कटाक्ष के साथ…..आज जाने क्यों समाज से अपनत्व लुप्त होता जा रहा है,,,,,,काफी गंभीर विषय है …………मिलता भी है तो सिर्फ बातो में या क्षणिक रूप में …….बहुत उम्दा बब्बू जी !!
सही कहते हैं आप…….तहदिल आभार आपका…..निवतियाजी…….
Bahut hi sundar rachna Sharma ji…
Bahut khoob Babbu ji. Ant me baad prabhaavshaali darshan se rubaru kara diya.
तहदिल आभार आपका……..Madhukarji…
तहदिल आभार आपका……..Anuji…..
बहुत उम्दा रचना बब्बु सर…………
तहदिल आभार आपका…..Madhuji….