*यह प्रभात की बेला अनुपम*बीती निशा मिटा अँधियारा,चन्द्र-भानु को मिला किनारा|खग कुल जगे प्रात गुण गाते,नेह राग का गीत सुनाते।रवि रथ की है छँटा निराली,सुमनों के अधरों पर लाली|बहती मलय समीर सुगन्धित,उत्पल दल विस्तारित शोभित।पात-पात निर्झर रस मोती,वसुंधरा लालिमा सँजोती।पूरब दिशि उजियारा फैला, पश्चिम का है आँगन मैला।लहके लह लह खेती क्यारी,महके मह मह बारी-बारी|अवनि हृदयतल शीतल मद्धम,यह प्रभात की बेला अनुपम। -‘अरुण’
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प्राकृतिक सौंदर्य की छटा बिखेरती मनमोहक रचना…….बहुत खूबसूरत ……..।।
आभार सर
Bahut Sundar…
धन्यवाद मैंम
Behad sundar chitran Arun…….
सादर नमन सर
बहुत बढ़िया…………सुन्दर प्रकृति वर्णन………
कृपया झंडा फहराये सुनिए………….
जी जरूर।
आपका धन्यवाद