सच्चा प्यार
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जिस ह्रदय में किसी को सराहने के पनपते विचार नहींउसको भी सराहना पाने का बनता कोई अधिकार नहींनिसन्देह: त्याग के यथार्थ भाव का तात्पर्य पाने से है निरक्त भावो को कभी भी मिलता सच्चा प्यार नहीं !!
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डी के निवातिया
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Antim do lines me jo aap kahnaa chaah rahen hain aspasht hai.
शुक्रिया शिशिर जी ………..भाव इस प्रकार है ……….!
निसन्देह: त्याग के यथार्थ भाव का तात्पर्य पाने से है
निरक्त भावो को कभी भी मिलता सच्चा प्यार नहीं !!
अर्थात इसमें कोई संदेह नहीं कि त्याग या देने के सात्विक भाव का सीधा सम्बन्ध पाने से होता है यदि आप में देने के भाव होंगे तो स्वत: आपको इतना आनदं मिल जाएगा कि कुछ पाने कि लालसा ही नहीं रहेगी, अर्थात देने का तात्पर्य पाने से होता है ………निरक्त का तात्त्पर्य ऐसे भावो के वयक्ति से जिसके लिए रक्त-सम्बन्ध या व्यक्ति के प्रति कोई सवेदना, सचेतन या अहसास के कोई भाव न हो ….ऐसा व्यक्तित्तव कभी किसी के प्रति उदारता का भाव नहीं रखता ..एतएव ऐसे में सच्चा प्रेम कैसे प्राप्त हो सकता है !
Bhaav to bahut goodh hai. Lekin antim line me jo niraktta vyakti ki gai hai vo swarthpoorn rishton ke kaaran upajne vaale vairagya ke kaaran bhi to ho sakti hai .
सत्य कहा आपने स्वार्थपूर्ण रिश्तो में कभी सात्विक प्रेम कि अनुभूति नहीं हो सकती ……..यही सार भी कहता है …………..तह दिल से शुक्रिया आपका…………!!
.पिछली रचना पर आपके विचारो के आकांक्षी है ……कृपया नज़र कर अनुग्रहित करे !!
बहुत ही सत्य ,सटीक तथ्य है निवातिया जी……………
बहुत बहुत धन्यवाद मधु जी ……………!!
सौफीसदी सत्य कथन…..लाजवाब……..
बहुत बहुत धन्यवाद बब्बू जी ……………!!
सत्य कथन..
बहुत बहुत धन्यवाद शुक्ला जी ……………!!
Very nice and true, Nivatiya ji…
बहुत बहुत धन्यवाद अनु जी ……………!!
अच्छे तरीके से कही भाव बहुत ही सुंदर है। सत्य कहने की अच्छी कोशिश।
बहुत बहुत धन्यवाद बिंदु जी।
बहुत बहुत धन्यवाद बिंदु जी।