कशमकस कैसी है ये, किस उलझन मे उलझा हूं मैकिस चांह कि पनाह मे,हुआ खुद से गुम-सा हूं मैकरता बसर खुद मे ही हूं,फिर भी कहीं भटका हूं मैइक अजनबी एहसास की, निकला हूं मै तलाश मेऐ-जिन्दगी तुं ही बता,हूं कौन मै, कहां हूं मै…कशमकस कैसी है ये, किस उलझन मे उलझा हूं मै………IBN
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Isi kashmakash ko hi to maayaa kaa ek roop karte hain. Bahut khoob Inder.
धन्यवाद शिशिर जी
behad khoobsoorat…………
शुक्रिया C M साहब
सही कहा आपने ………………..अति सुंदर !
धन्यवाद निवातिया जी
बढ़िया..
आभार शुक्ला जी
Bahut Sundar….
धन्यवाद अनु जी
अच्छा कहा आपने वैसे उलझन में ही सारी दुनिया है।
धन्यवाद
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ आपकी…………………..