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★★दिल किसीका कभीभी दुखाया न जायें★★
दिल किसीका कभीभी दुखाया न जायें
जख्म दिलका किसीको दिखाया न जायें
हो मोहोब्बत छुपीसी किनारो पे दिल के
पार दिलके कभीभी बहाया न जायें
दिल किसीका कभीभी दुखाया न जायें
जख्म दिलका किसीको दिखाया न जायें !!
राह जो ये मोहोब्बत की आसां नहीं
हर कोई जानता इसकी भाषा नहीं
हो अगर जानने वाला हाल-मोहोब्बत
राज दिलका फिर उससे छुपाया न जायें
दिल किसीका कभीभी दुखाया न जायें
जख्म दिलका किसीको दिखाया न जायें !!
साथ गर जिंदगी में किसीका मिले
हात गर सामने कोई आकर बढे
हो रही हो मुकम्मल अगर जिंदगी
प्यार ऐसा कोई फिर गवायाँ न जायें
दिल किसीका कभीभी दुखाया न जायें
जख्म दिलका किसीको दिखाया न जायें
हो मोहोब्बत छुपीसी किनारो पे दिल के
पार दिलके कभीभी बहाया न जायें
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गीत✍
शशिकांत शांडिले, नागपुर
भ्र.९९७५९९५४५०
शशिकांतजी….बहुत सुन्दर भाव…कहीं कहीं टंकण गलतियां हैं…मोहोब्बत उर्दू का लफ्ज़ है इसको बोल चाल में मुहब्बत, मोहब्बत भी लिखते हैं पर मोहोब्बत नहीं…. असल लफ्ज़ उर्दू में महब्बत है वैसे…. “राह जो ये मोहोब्बत की आसां नहीं” इसमें ‘जो’ न हो तो अच्छा है है…
“हात गर सामने कोई आकर बढे”
इसकी अगर ऐसे लिखें तो कैसा लगता देखिये
“और सामने आके कोई दिल से मिले”
‘हो रही हो मुकम्मल अगर जिंदगी’ को
“हो रही हो ज़िन्दगी मुकम्मल तो”
हर पंक्ति में “गर” “अगर” कुछ खटकता है…..
आप के द्वारा दिए सुझावों का मै मनपूर्वक स्वागत करता हु,
मुहब्बत या मोहब्बत सही है
“हात गर सामने कोई आकर बढे”
इसकी अगर ऐसे लिखें तो कैसा लगता देखिये
“और सामने आके कोई दिल से मिले”
‘हो रही हो मुकम्मल अगर जिंदगी’ को
“हो रही हो ज़िन्दगी मुकम्मल तो”
हर पंक्ति में “गर” “अगर” कुछ खटकता है…..
उपरोक्त द्वारा लिखी पंक्तिया एक गीत है तथा इस गीत के चाल अनुसार प्रत्येक शब्द लिख्खे गए है,
अगर आप इस गीत को इसके सही चाल के साथ गाये तो आपको हरेक शब्द सही उच्चारण देंगे
परंतु एक कविता स्वरुप बोला जाए तो वे सही उच्चार नहीं दे पाते.
इसीलिए उपरोक्त सभी शब्दों का उपयोग किया गया है !
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हु शर्माजी !
बहुत खूबसूरत शशिकांत जी………………बब्बू जी के सुझाव सराहनीय है ……….!
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार निवातियाजी !
Sundar geet Shashikant. Varishtjano ke sujhaav mahtvpoorn hain.
जी जरुर ….
शुक्रिया !