जानकर अपना तुम्हें हम हो गए अनजान खुद सेदर्द है क्यों अब तलक अपना हमें माना नहीं नहीं हैअब सुबह से शाम तक बस नाम तेरा है लबों परसाथ हो अपना तुम्हारा और कुछ पाना नहीं हैगर कहोगी रात को दिन दिन लिखा बोला करेंगेगीत जो तुमको ना भाए वह हमें गाना नहीं हैगर खुदा भी रूठ जाये तो मुझे मंजूर होगापास वह अपने बुलाये तो हमें जाना नहीं हैजिंदगी तुम हो हमारी और तुम से जिंदगी हैये भला किसको बतायें और कुछ पाना नहीं हैमदन मोहन सक्सेना
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बेहतरीन,,,
अति सुंदर मदन मोहन सक्सेना….जी …….आप बहुत अच्छा लिखते है …………बेहतर होगा आप सभी गुणीजनों को पढ़े और और अपने विचार साझा कर आपसी सामंजस्य बनाये !
मेरा सभी रचनाकारों को सुझाव है की रचनाओं के सृजन का लाभ तभी है जब आपके भाव दुसरो तक पहुंचे, उसके लिए जरुरी है की आप अधिक से अधिक लोगो के सम्पर्क में रहे और अपने विचारो का आदान प्रदान करे, जितना अहम् स्वय का लिखना है उतना ही अहम् दूसरे को पढ़ना है, इससे न केवल आपसी प्रेम और सौहार्द का भाव उत्पन्न होता है, अपितु एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखने को भी मिलता है !
धन्यवाद !!
सुन्दर..