चहुँ ओर नगाड़ों का शोर ही शोर बस सुनता है…बिजलियाँ चमकती हैं, ज्वार बादलों में उठता है….भावों के धारों में, डूब जाते हैं तैराक भी कभी….लुट जाते हैं पर न, परवरदिगार कहीं मिलता है….दुनियां भावों अभावों में ही, बस उलझी फिरती है….ज़मीं समतल नहीं कहीं आस्मां नकारता दिखता है…दुःख सुख बेजोड़ संगम भूल, भ्रम में जीते हम सभी…वो दूर क्षितिज में, कहीं पे ज़मीं से आस्मां मिलता है…\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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सुन्दर, भावपूर्ण|
तहदिल आभार आपका………Arunji…
अति सुन्दर…..
तहदिल आभार आपका………Madhukarji…
सुंदर भाव ……………..भ्रम ही जीवन का आधार है ………जिसने इसका पार पा लिया वो सामान्य मानव नहीं रहा जाता …….!!
तहदिल आभार आपका………Nivatiyaji….