हर साल की तरह इस साल भी वह रावण का पुतला बना रहा था। विशेष रंगों का प्रयोग कर उसने उस पुतले के चेहरे को जीवंत जैसा कर दिया था। लगभग पूरा बन चुके पुतले को निहारते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी दर्द भरी मुस्कान आ गयी और उसने उस पुतले की बांह टटोलते हुए कहा, “इतनी मेहनत से तुझे ज़िन्दा करता हूँ… ताकि दो दिनों बाद तू जल कर खत्म हो जाये! कुछ ही क्षणों की जिंदगी है तेरी…”कहकर वह मुड़ने ही वाला था कि उसके कान बजने लगे, आवाज़ आई, “कुछ क्षण?” वह एक भारी स्वर था जो उसके कान में गुंजायमान हो रहा था, वह जानता था कि यह स्वर उसके अंदर ही से आ रहा है। वह आँखें मूँद कर यूं ही खड़ा रहा, ताकि स्वर को ध्यान से सुन सके। फिर वही स्वर गूंजा, “तू क्या समझता है कि मैं मर जाऊँगा?”वह भी मन ही मन बोला, “हाँ! मरेगा! समय बदल गया है, अब तो कोई अपने बच्चों का नाम भी रावण नहीं रखता।”उसके अंदर स्वर फिर गूंजा, “तो क्या हो गया? रावण नहीं, अब राम नाम वाले सन्यासी के वेश में आते हैं और सीताओं का हरण करते हैं… नाम राम है लेकिन हैं मुझसे भी गिरे हुए…” उसकी बंद आँखें विचलित होने लगीं और हृदय की गति तेज़ हो गयी उसने गहरी श्वास भरी, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, स्वर फिर गूंजा, “भूल गया तू, कोई कारण हो लेकिन मैनें सीता को हाथ भी नहीं लगाया था और किसी राम नाम वाले बहरूपिये साधू ने तेरी ही बेटी…””बस…!!” वह कानों पर हाथ रख कर चिल्ला पड़ा।और उसने देखा कि जिस पुतले का जीवंत चेहरा वह बना रहा था, वह चेहरा रावण का नहीं बल्कि किसी ढोंगी साधू का था।-डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी9928544749
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Meri kavita जख्मी परिंदे padhe aur apni ray de
जी अवश्य
हमारे अंदर ही देव और राक्षस छुपे बैठे हैं…सबसे ज्यादा नुक्सान दोहरे चरित्र वाले ही करते हैं…काश! हर इंसान अपने अंदर झांके तो अहसास हो राम और रावण के फर्क का….कटाक्ष के साथ सत्यता को उजागर करती…बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति…
अपनी टिपण्णी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय सी.एम. शर्मा जी
सुंदर भाव ………………दरअसल राम और रावण का बोध कर्म और आत्मचिंतन से है ………..जो जैसे भावो का अनुकरण करता है वैसा ही आचरण में ढलने लगता है ……..!!
अपनी टिपण्णी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय डी,के निवातिया जी
Nice one