*उस दिन..*(अतुकांत)उस दिनछायेगी धुन्धमेरे कृतित्व की,उठेगा धुंआमेरी यादों का,फैलेगी खुशबूया दुर्गन्धमेरे कुकर्मो-सुकर्मों की|उस दिन,मैं भी कसा जाऊँगा,कर्म की कसौटी पर,मूल्यों और मानकों पर,चर्चा के बाज़ार में,सुलग उठूँगा अचानक,परख होगी मेरी भीहाँ!मेरी भी|उस दिन,चमक उठूँगा नेह के मोतियों में,या घृणा कीस्याह में,ढूंढ़ा जाऊँगा मैं भी तारों में,यादों की परछाईं में,गुम-सुम उदास आँगन में,ममता के गीले आँचल में।जिस दिनमैं चलूँगा, मैं जलूँगा,हाँ!मैं जलूँगा। -‘अरुण’
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Bahut khoob Arun……..sukarm ko prerit karti bhadiya rachnaa……
सादर आभार सर
बेहद खूबसूरत मन के भावों को पिरोया है आपने…..सही है कर्म के फल से कोई भी अछूता नहीं है…. भगवान् कृष्ण ने भी गीता में यही कहा है…
भाव आप तक पहुचने पर नमन
सुन्दर
सादर आभार
यथार्थ से परिपूर्ण आत्मचिंतन को प्रेरित करती सुंदर कृति ….!
आपका धन्यवाद सर
आपके शब्द अनमोल हैं।