मुझसे बात करके तुम जो इतना खिलखिलाती हो अरे जज़्बात अपनी प्रीत के नाहक छुपाती हो तुम्हारा रूप वो मुझको सदा बेचैन करता है शर्म से पल्लू का कोना जो तुम मुँह में दबाती हो करा इकरार तुमने पर कभी मुँह से नहीं बोला मुझे पैग़ाम मिल जाता है जब नज़रें झुकाती हो तुन्हें मालूम होता है कि मैं तुमको मनाऊंगा तभी मुझको सताने को ही तुम नखरे दिखाती हो कई मय आजमाईं पर नशा होता ना था मधुकर मुझे ना होश रहता है नज़र से जब पिलाती हो शिशिर मधुकर
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मनमोहक रचना
Dhanyavaad Abhishek…….
khoobsoorat………….
Dhanyavaad Babbu Ji …………….
वाह…..क्या बात है ………..अति सुंदर शिशिर जी !
Tahe dil se shukriya Nivatiya Ji ……………….
Bahut hi badiya…
Tahe dil se shukriya Manuraaj……………..
सुन्दर| मधुर श्रंगार रस|
धन्यवाद अरुण जी…..
Bahut Sundar, Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Anu. Kahi dinon baad …… Hope all is well.