आंखों देखी बात सच थी या झूठ पता नहीं नजरबंद था या वक्त का तकाज़ा धोखा इसी का नाम है सच कहूँ तो भरोसा नहीं विश्वास में घात जरूरी नहीं झटके में हम हैं या फिर नहीं खून करके वरी हो गये फंस गए खून से सने चाकूवाला जिसके हाथ चाकू वही दोषी मदद करने वाला सिर्फ निकाल रहा था चाकू उसके हाथ खून से रंगे थे पुलिस के हत्थे चढ़ गया चाकू उसी के हाथ था सन्न रह गया वह चिल्लाता रहा गुहारें करते हुए मजदूर हो गया बेकसूर फिर भी उम्र कैद सत्य को सबूत देने में विफल रहा हार गया वहथक कर चूर हो गया वाह रे कानून वाह रे हिन्दुस्तान खराब कर दी जिंदगी….. ।
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Aksar aisa hota hai swarthy maanav samaaj me.
ati sundar………….
सत्य कहा अपने अक्सर कई बार ऐसा भी होता पाया जाता है ……….अति सुंदर बिंदु जी !