काहे का इंसानजिसमे सेवा का भाव नहींमानवता का एहसास नहींजो खुद से ही अनजान हैंवह काहे का इंसान हैं!जिसमे ना देश की सोच हैंजो देश की ऊपर बोझ हैंयहाँ उसका ना कोई स्थान हैंवह काहे का इंसान हैं!जो हरदम ही दुख में रहता हैंजो औरों को भी दुख देता हैंजो हर सुख से अनजान हैंवह काहे का इंसान हैं!जिसके भीतर कोई प्यार नहींजिसके हो अच्छे विचार नहींनफ़रत ही उसकी शान हैंवह काहे का इंसान हैं!जो राम-रहीम के नाम पर लड़ रहाबिन बातों की जिद पे अड़ रहाजो ईश्वर का करता अपमान हैंवह काहे का इंसान हैं!जिसमे भरा अभिमान हैंना औरो का सम्मान हैंउसका झूठा सारा ज्ञान हैंवह काहे का इंसान हैं!✍🏻✍🏻मु.जुबेर हुसैन
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बहुत सही कहा है आपने….आपकी रचना जैसी सोच सब की हो तो देश स्वर्ग बन जाए….
सही कहा सर आपने,,,
सुंदर विचाराभिव्यक्ति ……….!!
अभार ,,,,सर
SUNDER RACHNA ACHCHHI KHYAL.
Thanks,,,